अण्णाभाऊ साठे: संघर्ष और लोक साहित्य के अमर नायक

जब मैं छठी कक्षा में था, तब मैंने पहली बार अण्णाभाऊ साठे के बारे में पढ़ा और उनके जीवन पर एक भाषण लिखा। वह भाषण मैंने 31 जुलाई 2021 को अण्णाभाऊ साठे जयंती (1 अगस्त) के अवसर पर अपलोड भी किया था।

अण्णाभाऊ साठे, जिनका असली नाम तुकाराम भाऊराव साठे था। उनका जन्म अछूत माने जाने वाले मांग  समुदाय में हुआ था। उनका पालन-पोषण और पहचान ही उनके लेखन और राजनीतिक सक्रियता का मुख्य आधार रही, जिससे उन्होंने समाज के वंचित वर्गों की आवाज़ बुलंद की। उनका जीवन दलितों, मजदूरों और वंचितों के संघर्षों से जुड़ा रहा और यही संघर्ष उनके साहित्य में गहराई से झलकता है।

उनकी प्रमुख रचनाओं में फकीरा, और अनेक लघुकथाएँ शामिल हैं। लोकशाहीर के रूप में उन्होंने तमाशा और लोकगीतों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया।

18 जुलाई 1969 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनका साहित्य आज भी समाज को प्रेरणा देता है।

नीचे अण्णाभाऊ साठे द्वारा लिखित प्रसिद्ध गीत/कविता “जग बदल घालुनी घाव … सांगून गेले मला भीमराव” प्रस्तुत है, जो डॉ. आंबेडकर की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजली स्वरूप रची गई थी। ये शब्द उनके संघर्ष और समाज परिवर्तन के दृष्टिकोण को व्यक्त करते हैं:

जग बदल घालुनी घाव ।
सांगून गेले मला भीमराव ।।
गुलामगिरीच्या या चिखलात ।
रुतून बसला का ऐरावत ।।
अंग झाडूनि निघ बाहेरी ।
 घे बिनीवरती धाव ।।
धनवंतांनी अखंड पिळले ।
धर्मांधांनी तसेच छळले ।।
मगराने जणू माणिक गिळीले ।
चोर जहाले साव ।।
ठरवून आम्हा हीन अवमानित ।
 जन्मोजन्मी करुनी अंकित ।।
जिणे लादून वर अवमानित ।
निर्मुन हा भेदभाव ।।
एकजुटीच्या या रथावरती ।
आरूढ होऊनि चलबा पुढती ।।
नव महाराष्ट्रा निर्मुन जगती ।
करी प्रगट निज नाव ।। 

इस गीत में गुलामी, असमानता और वंचितों के दर्द की अभिव्यक्ति है। यह कविता दलित संघर्ष और सामाजिक जागरूकता की प्रतीक है, जिसमें अण्णाभाऊ साठे के शब्दों का तीव्र प्रभाव दिखाई देता है 

Published by aaravraut

मैं अमरावती (महाराष्ट्र) से आरव राउत हूं। मै शुरू से ही एक प्रिंट-समृद्ध वातावरण में बड़ा हुआ, यही कारण था कि पढ़ने और लिखने की दिशा में मेरी प्रवृत्ति विकसित हुई। मेरी मातृभाषा मराठी है। हिंदी दूसरी भाषा है, जिसे मैंने दिल्ली में सुनना और अध्ययन करना शुरू किया जब मेरे पिता महाराष्ट्र से दिल्ली स्थानांतरित हो गए, मैं उस समय केवल 6 वर्ष का था। डायरी के ये पृष्ठ इस अर्थ में बहुत खास हैं क्योंकि यह मेरे द्वारा कक्षा 2 से ही लिखें गए है। मैं एजुकेशन मिरर का सबसे छोटा लेखक हूं जो एक ऑनलाइन शिक्षा संगठन है। जब मेरी दो डायरियाँ प्रकाशित हुईं, तो मैं दूसरी कक्षा में पढ़ रहा था। मैं हिंदी, मराठी के साथ ही अंग्रेजी भाषा में भी लिखता हूं। मुझे यात्रा करना, किताबें पढ़ना और नए विचारों पर काम करना पसंद है। घर पर, मुझे हमेशा अपने मन की बात लिखने की आजादी थी, मैं कभी भी उपदेशक बातें लिखने के लिए मजबूर नहीं था। यही कारण था कि मैंने जल्द ही पढ़ना और लिखना सीख लिया। बचपन में, मैंने लेखन की तकनीकी चीजों को समझा। मुझे याद है कि जब मैं कक्षा 1 (संत मैथ्यूज पब्लिक स्कूल, पश्चिम विहार, दिल्ली) में पढ़ रहा था, तब से मैंने लिखना शुरू किया। पहली बार मैंने 5 अप्रैल 2017 को लिखा था और तब से मैंने कई विषयों पर लिखा और मैंने अपने लेखन के सभी पृष्ठों को संजोकर रखा है। मेरे लेखन की यात्रा के दौरान, मुझे कभी भी किसी भी गलती के लिए बाधित नहीं किया गया था, मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं किसी भी व्याकरण में फंसे बिना लिखूं। इसी बात ने मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि मुझे पता था कि अगर कुछ गलत हुआ तो माँ / पिता कुछ नहीं कहेंगे। मैं किसी विषय के बारे में बहुत विस्तार के साथ एक पृष्ठ या कई पृष्ठ लिखता हूं।अगर मेरे द्वारा लिखे गए विषयों को देखा जाए, तो बहुत विविधता है।cc

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