राजा सुदीर की साहस कथा -(Part 4 of 9)

“चकमक चकमक ची ची चू चू, बदल जाए यह मेरा मुँह”

यह कहानी का चौथा भाग है। इस कहानी को मैंने 9 भागों में बाँटा  है। मुझे इन 9 शब्दों (राजा, शैतान, सेना, प्रजा, हाथी, घोडा, भाला, झंडा, लड़ाई) से  कहानी बनाने का  टास्क मिला था । जिस  कहानी को  मुझे दो पन्नों में लिखना था वह 2 , 3 , 4 , 5 . . . .   करते करते रजिस्टर के 30 पन्नों की बन गयी।  यह 30 पन्ने अचानक नहीं लिखे गये क्योंकि कई बार बिच बिच  में मैंने इस कहानी को लिखना छोड़ दिया था , फिर वह गैप कभी कभी एक दो महीनों की भी हो जाती थी ।  मै  लिखता गया , लिखता गया , लिखता ही गया ……..   और इसी लिखने के सफ़र में एक साल कैसे निकल गया मुझे पता ही नहीं चला।  ऐसे करते करते आख़िरकार इस कहानी को मैंने अंतिम मुक़ाम तक पहुंचा ही दिया। इस कहानी के चित्र मैंने और मेरी मम्मी ने बनाये , जिसे करीबन दो महीने लगे थे। आशा करता हूँ की आप इस कहानी के सारे भाग पढ़ेंगे और इसका लुफ़्त भी उठाएंगे। आपके सुझाव मुझे भविष्य में और बेहतर लिखने के लिए प्रेरणा देंगे।

आरव राउत

आम जादुई आदमी को उग्रराज सहज अपने राज्य के सिमा के अंदर जाने देगा इसलिए पहले हमें आम जादुई आदमी के जादू, जादूगर अकरम से सीखना होगा। तुममे से कोई जादूगर अकरम को बुलाओ और कोई महल के नीचे सुरंग में से हमारे सबसे ताकतवर हथियार लाओ फिर मै आगे की योजना बताऊंगा।

तभी वहां पर महाराज सूर्यकान्त जी आते है और राजा सुदीर ने महाराज सूर्यकान्त जी को वहाँ तक योजना बताई जहां तक वफादारों को बताई थी और ये भी कहा कि कुछ देर में जादूगर अकरम और हमारे ताकतवर हथियार लाए जाएंगे।

राजा सुदीर और सूर्यकान्त जी की मीटिंग

ये कहते ही जादूगर अकरम आ गया फिर राजा सुदीर ने जादूगर से  कहा कि तुम हमारे सैनिकों को आम जादुई आदमी के जादू सिखाओ और मुझे कुछ जादुई चीजे दो जो उग्रदेश में कोई खरीद पायेगा तो जादूगरने हाँ कहा और सबको जादू सीखा दिया और राजा सुदीर ने जो चीजे माँगी थी वो भी दे दी। राजा सुदीर का काम हो गया था बस उनको सबके लिए एक जादुई मुद्रा चाहिए थी ताकि उनके पास एक असली जादुई आदमी की पहचान आए।  राजा सुदीर उग्रदेश में ५० सैनिक ले जाने वाला था। उसने एक सैनिक को बुलाया और कहा की उग्रदेश के सभी जासूसों को बता दो की हमें ५१ मुद्रा चाहिए, तभी उस सैनिक ने एक सवाल पूछा की हम तो ५२ लोग रहेंगे तो ५१ जादुई मुद्रा क्यों ? तभी राजा सुदीर बोले की आगे तुम्हे पता चल जाएगा। फिर वह सैनिक एक जासूस के पास जाता है और कहता है की राजा सुदीर को ५१ जादुई मुद्रा चाहिए। यह सुनने के बाद वह जासूस  सीधे उग्रदेश के सबसे अमीर जासूस जिसका नाम अमजु है उसके पास एक खत लिखता है की राजा सुदीर को ५१ जादुई मुद्रा चाहिए। तो उस अमजु ने उसके उत्तर में लिखा की “राजा सुदीर आपको बस ५१ ही जादुई  मुद्रा चाहिए मै आपको सौ दे देता हु क्यों की मेरे पास तो हजारो जादुई मुद्राए है, अगर बाद में काम पड़े तो उनमे से ले लेना”। खत के साथ साथ अमजु १०० जादुई मुद्रा भी भेज देता है।  वो १०० जादुई मुद्रा और खत राजा सुदीर के पास रात को पहुंचे। फिर राजा सुदीर ने सबको अपने कमरे में बुलाया और योजना सुनानी शुरू की। 

राजा सुदीर

राजा सुदीर कहते है की, अब सभी सैनिक जो यहाँ पर बैठे है वह बिना हिचकिचाते हुए उग्रदेश में घुस सकते है, क्योंकि अब सबके पास जादुई मुद्रा भी होंगी और सब जादू भी सीखे होंगे लेकिन वहा पर मै नहीं जा पाऊँगा क्योंकि उग्रदेश के सभी लोग मुझे अच्छी तरह से पहचानते है।  इसके लिए मेरे पास एक लाजवाब हल है। मै हर वक्त महाराज सूर्यकान्त के पिट पीछे जादुई चादर  को ओढ़के  घूमूँगा ताकि गलती से भी किसी जादुई सैनिक ने या अमीर  लोगोने देख लिया तो उनको मै महाराज सूर्यकान्त जी ने लटकाया हुआ एक थैला दिखूंगा और आम जादुई लोगो को तो मै वैसे भी नहीं दिखूंगा। राजा सुदीर ने ये भी कहा की अब हमारे पास सिर्फ चार दिन ही बचे है। इसके तुरंत बाद राजा सुदीर महाराज सूर्यकान्त को लेकर जादूगर अकरम के पास जाते है और उससे कहते है की महाराज सूर्यकान्त को जादुई मंत्र बताओ जिससे इनका पूरा चेहरा बदल जाए और ये  एक बूढ़े आदमी  जैसे लगे,  मै ये इस लिए कह रहा हु क्योंकी उग्रराज सभी राजाओ को अच्छी तरह से पहचानता है।  जादूगर अकरम महाराज सूर्यकान्त जी को जादुई मंत्र बताता है

“चकमक चकमक ची ची चू चू, बदल जाए यह मेरा मुँह”

इसे कहने वाले का चेहरा पूरी तरह से बदल जाएगा।  तभी जादूगर अकरम राजा सुदीर से पूछता है क्या आपको इस मंत्र की जरूरत नहीं है? राजा सुदीर बोलते है, नहीं मुझे इसकी जरूरत नहीं है।  यह कहने के बाद राजा सुदीर और महाराज सूर्यकान्त  महल में जाकर सो जाते है। 

जादूगर अकरम

अगले दिन राजा सुदीर ने ५ जादुई सैनिकों को बुलाया जो राजा सुदीर के साथ थे लेकिन  इस योजना से अनजान थे, उन्हें कहा गया की वह दरबार के दरवाजे की रक्षा करे,  इस दरवाजे से आने वाले हर आदमी का चेहरा याद रखें, वह सभी ऐसा ही करते है। पहले उस दरवाजे से कुछ आम आदमी गुजरते है लेकिन बीच मे ही महाराज सूर्यकान्त जी इस मंत्र  का –

“चकमक चकमक ची ची चू चू, बदल जाए यह मेरा मुँह” 

उच्चारण करके बूढ़े आदमी में बदल जाते है, राजा सुदीर जादुई चादर  को अपने शरीर पर ओढ़कर महाराज सूर्यकांत के पिट पीछे  चलकर दरवाजे से अंदर आ जाते है।  बाद में जब उन  जादुई सैनिकों को पूछा जाता है की – कौन कौन से लोग उस दरवाजे से अभी गुजरे है ? तो उनके जवाब में  बूढ़े का भी नाम आता है  जिसने एक थैला लटकाया हुआ था।  इससे सभी को ये यकीन हो जाता है की जादुई सैनिको को जादुई चादर  ओढ़े हुए राजा सुदीर सच मे एक थैले जैसे दिखते है।  फिर महाराज सूर्यकांत उन पांचो जादुई सैनिको के सामने यह मंत्र कहते है –

चकमक चकमक ची ची चू चू, हो जाए पहले जैसा मुँह”

और यह कहते ही बूढ़े आदमी से वापस महाराज सूर्यकांत बन जाते है और राजा सुदीर थैले से राजा सुदीर बन जाते है।  यह सब देखकर पाँचो के पाँचो जादुई सैनिक चौंक जाते है तभी राजा सुदीर उनको बोलते है की जल्दी से उग्रदेश के मुख्यद्वार पर खड़े हो जाओ और वहा से दूसरे जादुई सैनिकों को हटवा दो ताकि हम किसी को भी ना दिखे ।  पांचों के पांचो जादुई सैनिकों को महाराज सूर्यकान्त जी का चेहरा  याद रखना होगा ताकि आगे जाकर कोई भूल न हो।  फिर पांचो जादुई सैनिक उग्रदेश के मुख्यद्वार पर खड़े हो जाते है।  राजा सुदीर, महाराज सूर्यकांत और बाकी के पचास लोग पूरी तैयारी करके, ५१  जादुई मुद्रा लेकर एक एक करके उग्रदेश के मुख्य द्वार से उग्रदेश के एक शहर से होते हुए जासूसों के एक छोटे से घर पर ठहर जाते है।

अगले भाग में पढ़िए – गोटासुर आखिर है कहा ?

Published by aaravraut

मैं अमरावती (महाराष्ट्र) से आरव राउत हूं। मै शुरू से ही एक प्रिंट-समृद्ध वातावरण में बड़ा हुआ, यही कारण था कि पढ़ने और लिखने की दिशा में मेरी प्रवृत्ति विकसित हुई। मेरी मातृभाषा मराठी है। हिंदी दूसरी भाषा है, जिसे मैंने दिल्ली में सुनना और अध्ययन करना शुरू किया जब मेरे पिता महाराष्ट्र से दिल्ली स्थानांतरित हो गए, मैं उस समय केवल 6 वर्ष का था। डायरी के ये पृष्ठ इस अर्थ में बहुत खास हैं क्योंकि यह मेरे द्वारा कक्षा 2 से ही लिखें गए है। मैं एजुकेशन मिरर का सबसे छोटा लेखक हूं जो एक ऑनलाइन शिक्षा संगठन है। जब मेरी दो डायरियाँ प्रकाशित हुईं, तो मैं दूसरी कक्षा में पढ़ रहा था। मैं हिंदी, मराठी के साथ ही अंग्रेजी भाषा में भी लिखता हूं। मुझे यात्रा करना, किताबें पढ़ना और नए विचारों पर काम करना पसंद है। घर पर, मुझे हमेशा अपने मन की बात लिखने की आजादी थी, मैं कभी भी उपदेशक बातें लिखने के लिए मजबूर नहीं था। यही कारण था कि मैंने जल्द ही पढ़ना और लिखना सीख लिया। बचपन में, मैंने लेखन की तकनीकी चीजों को समझा। मुझे याद है कि जब मैं कक्षा 1 (संत मैथ्यूज पब्लिक स्कूल, पश्चिम विहार, दिल्ली) में पढ़ रहा था, तब से मैंने लिखना शुरू किया। पहली बार मैंने 5 अप्रैल 2017 को लिखा था और तब से मैंने कई विषयों पर लिखा और मैंने अपने लेखन के सभी पृष्ठों को संजोकर रखा है। मेरे लेखन की यात्रा के दौरान, मुझे कभी भी किसी भी गलती के लिए बाधित नहीं किया गया था, मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं किसी भी व्याकरण में फंसे बिना लिखूं। इसी बात ने मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि मुझे पता था कि अगर कुछ गलत हुआ तो माँ / पिता कुछ नहीं कहेंगे। मैं किसी विषय के बारे में बहुत विस्तार के साथ एक पृष्ठ या कई पृष्ठ लिखता हूं।अगर मेरे द्वारा लिखे गए विषयों को देखा जाए, तो बहुत विविधता है।cc

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