मैंने अब तक कई तरह के सफ़र के बारे में लिखा है। सफ़र की यादें मैंने शब्दों में कैद कर दी है। इनमे से मै कुछ आपके साथ साझा कर रहा हु।
आज मेरा जू जाने का सपना पूरा हो गया पता है। मैं आज तक जू क्यों नही जा पाया हूँ क्योंकि हर शनिवार को मेरे पापा सोते रहते या कहीं गए होते है या वो करते है या ये करते है पर ज्यादातर सोते ही हैं। मैंने कभी सोचा भी नहीं था की इस जू (zoo) मे इतने बड़े-बड़े एनिमल्स होंगे। इस जू में पता है वो प्राणी होते है जो कभी हम देख ना सके पुने (पुणे) मे तो शेर नहीं था, राइनोसोरस भी नहीं था और हिप्पो पोटैमस भी नहीं। पर ये जू मूझे बहूत अच्छा लगा।
फिर हम कोलम्बस नामक एक झूले पे गए। वहा पे मेरे मम्मी पापा ने टिकिट निकाली उधर पहले ही लोग थे तो हम रुक गए वहा अनामिका दिदि और वैभव अंकल पहूचे तो उन्होने भी टिकिट निकाली तो फिर वो राइड रुक गयी मूझे पिछे बैठना था पर अनामिका दिदि के वजह से बिच मे बैठना पड़ा इधर — और पहले से ही सबसे पीछे कोई बैठा था। फिर राइड शूरू हो गई तब तो मज़ा नही आया था पर उसके बाद मतलब तेज होने के बाद, इतना मज़ा आया कि मैं बता भी नहीं सकता पर अनामिका दिदि को कूछ मज़ा नही आया वो इतनी डरी थी कि वो आँखे बंद करके आगे वाले हैंडल को पकड़ी रही। बिच वालो को हि इतना डर लग रहा था तो सबसे पिछ वालो को कितना लग रहा होगा। पता है जब एक साइड ऊपर जाती है तब वो चिल्लाती है जब दूसरी जाती है तब वो चिल्लाती है। फिर ये झूला रुकने लगा फिर हम उतर गए उसके बाद हम आगे गए।
मंदिर के अंदर जाने के पहले मैंने और मेरी मम्मी ने वाटर शो की टिकिट निकाल ली थी। मंदिर के बाद हम मयूर गार्डन में गए। वहाँ पर मैंने बहुत सारे नेशनल लीडर के पुतले देखे जैसे की झाँसी की रानी, महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस थे और दूसरे भी लीडर थे जिनका मुझे अभी याद नहीं। मुझे वहा पर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का पुतला नहीं दिखा, पता नहीं मुझे कि अक्षरधाम में उनका पुतला क्यों नहीं रखा? लेकिन मुझे यह पता है की वो भी एक नेशनल लीडर हैं।
मुझे पता नहीं था की शिमला के पहाड़ इतने बड़े होंगे और वहा पर बहुत सारे बन्दर थे। हम घर के अंदर गए वह घर बहुत बड़ा था। मैंने ऐसा घर पहली बार देखा की जहाँ पर बास्केट बॉल का कोर्ट बिलकुल घर के सामने ही हो। वहां पर दो बास्केट बॉल थे पर वो भी फुस, पर खेलने लायक थे , मैं उसके साथ खेलने लगा , अब मै थक चूका था इसलिए मैं थोड़ी देर बाद घर के अंदर आ गया। मैं घर की चीजे देख ही रहा था कि तभी मुझे एक खिलौना दिखा जिसमे साबुन का पानी डालकर फूंक मारने से बुलबुले निकलते है तब मैं उसी से खेलने लगा और घर के अंदर बुलबुले फ़ैलाने लगा। खेलते-खेलते मै बाहर गया और तभी मेरे हाथ से खिलौना गिर गया। फिर मैंने उसे मेरे जूते से फैला दिया ताकि किसी को इसकी भनक ना लगे। फिर मेरा मन उस खिलौने से भर गया और मैंने बास्केटबॉल खेलना शुरू कर दिया।
मी तिथल्या झाडा झुडुपांना पाहतच होतो कि पाठीमागून एका वाघाची गर्जना ऐकू आली, आणि समोरून एक नकली वाघ चालत -चालत समोर गेला. काही वटवाघूळ आवाज करत करत गेले. समोर एक एवढा भयानक चेहरा होता, त्येच्यावर काही उजेड नव्हता, जेव्हा गाडीचा डब्बा तिथे आला तेव्हाच त्याच्यावर पांढरा लाईट पडला पण मी काही त्याने घाबरलो नाही. बरं झालं की ते “भुतिया रात” संपलं, जर एक तास ते असतं तर मी रडलोच असतो ! ! !
मला सकाळी ४.३० वाजता आईने उठवलं आणि मला बाथरूम मध्ये तोंड धुऊन दिले. मी लगेच माझा शूज घातला आणि बॅग पॅक केली. शूज घातल्यावर मी सगळ्यांसोबत कॅन्टीन वर गेलो. तिथे मी सोडून सगळे जण चहा पिले. तिथे ते गाईड बोलत होते कि आपण आताच सफारीला जाऊया पण आम्हाला वाटलं कि अंधारात प्राणी नाही दिसत. म्हणून आम्ही (सुरज के पहिली किरण के साथ) निघायचं ठरवलं. काही वेळानंतर आम्ही बाहेर गेलो. मी पहिल्याच जिप्सी मध्ये बसलो.
बहीत सानदार लिखा है अपने मन की पुरी बात लिख दि और अपने पुराने वक्त की आदे भी ताजी कर दी और यह पढ़ कर में भी जु के खयालो में चला गया।
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Very very good Aarav 👍
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Good
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बहुत अच्छा लगता है आपको पढ़ना। आपको पढ़कर खुद कही घूम आने जैसा लगता है। शुक्रिया दोस्त।
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