सफर की यादें: दिल्ली से महाराष्ट्र तक

मैंने अब तक कई तरह के सफ़र के बारे में लिखा है। सफ़र की यादें मैंने शब्दों में कैद कर दी है। इनमे से मै  कुछ आपके साथ साझा कर रहा हु। 

National Zoological Park, New Delhi

आज मेरा जू जाने का सपना पूरा हो गया पता है। मैं आज तक जू  क्यों नही जा पाया हूँ क्योंकि हर शनिवार को मेरे पापा सोते रहते या कहीं गए होते है या वो करते है या ये करते है पर ज्यादातर सोते ही हैं। मैंने कभी सोचा भी नहीं था की इस जू (zoo) मे इतने बड़े-बड़े एनिमल्स होंगे।  इस जू में पता है वो प्राणी होते है जो कभी हम देख ना सके पुने (पुणे) मे तो शेर नहीं था, राइनोसोरस भी नहीं था और हिप्पो पोटैमस भी नहीं।  पर ये जू मूझे बहूत अच्छा लगा।

Chokhi Dhani, Sonipat, Haryana

फिर हम कोलम्बस नामक एक झूले पे गए।  वहा पे मेरे मम्मी पापा ने टिकिट निकाली उधर पहले ही लोग थे तो हम रुक गए वहा  अनामिका दिदि और वैभव अंकल पहूचे तो उन्होने भी टिकिट निकाली तो फिर वो राइड रुक गयी मूझे  पिछे बैठना था पर अनामिका दिदि के वजह से बिच मे बैठना पड़ा इधर — और पहले से ही सबसे पीछे कोई बैठा था।  फिर राइड शूरू हो गई तब तो मज़ा नही आया था पर उसके बाद मतलब तेज होने के बाद, इतना मज़ा आया कि मैं बता भी नहीं सकता पर अनामिका दिदि को कूछ मज़ा नही आया वो इतनी डरी थी कि वो आँखे बंद करके आगे वाले हैंडल को पकड़ी रही।  बिच वालो को हि इतना डर लग रहा था तो सबसे पिछ वालो को कितना लग रहा होगा। पता है जब एक साइड ऊपर जाती है तब वो चिल्लाती है जब दूसरी जाती है तब वो चिल्लाती है।   फिर ये झूला रुकने लगा फिर हम उतर गए उसके बाद हम आगे गए। 

Akshardham Temple, New Delhi

मंदिर के अंदर जाने के पहले मैंने और मेरी मम्मी ने वाटर शो की टिकिट निकाल ली थी। मंदिर के बाद हम मयूर गार्डन में गए। वहाँ पर मैंने बहुत सारे नेशनल लीडर के पुतले देखे जैसे की झाँसी की रानी, महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस थे और दूसरे भी लीडर थे जिनका मुझे अभी याद नहीं। मुझे वहा पर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का पुतला नहीं दिखा, पता नहीं मुझे कि अक्षरधाम में उनका पुतला क्यों नहीं रखा? लेकिन मुझे यह पता है की वो भी एक नेशनल लीडर हैं।

Shimala Tour, Uttarakhand

मुझे पता नहीं था की शिमला के पहाड़ इतने बड़े होंगे और वहा पर बहुत सारे बन्दर थे। हम घर के अंदर गए वह घर बहुत बड़ा था। मैंने ऐसा घर पहली बार देखा की जहाँ पर बास्केट बॉल का कोर्ट बिलकुल घर के सामने ही हो। वहां पर दो बास्केट बॉल थे पर वो भी फुस, पर खेलने लायक थे , मैं उसके साथ खेलने लगा , अब मै थक चूका था इसलिए मैं थोड़ी देर बाद घर के अंदर आ गया। मैं घर की चीजे देख ही रहा था कि तभी मुझे एक खिलौना दिखा जिसमे साबुन का पानी डालकर फूंक मारने से बुलबुले निकलते है तब मैं उसी से खेलने लगा और घर के अंदर बुलबुले फ़ैलाने लगा। खेलते-खेलते मै बाहर गया और तभी मेरे हाथ से खिलौना गिर गया। फिर मैंने उसे मेरे जूते से फैला दिया ताकि किसी को इसकी भनक ना लगे। फिर मेरा मन उस खिलौने से भर गया और मैंने बास्केटबॉल खेलना शुरू कर दिया।

Educational Tour at Fun and Food Park, Nagpur. Maharashtra

मी तिथल्या झाडा झुडुपांना पाहतच होतो कि पाठीमागून एका वाघाची गर्जना ऐकू आली, आणि समोरून एक नकली वाघ चालत -चालत समोर गेला.  काही वटवाघूळ आवाज करत करत गेले.  समोर एक एवढा भयानक चेहरा होता, त्येच्यावर  काही उजेड नव्हता, जेव्हा गाडीचा डब्बा तिथे आला तेव्हाच  त्याच्यावर पांढरा लाईट पडला पण मी काही त्याने घाबरलो नाही. बरं झालं की ते “भुतिया  रात” संपलं,  जर एक तास ते असतं तर मी रडलोच असतो ! ! !

Jungle Safari at Shahnur Dhargad, Maharashtra

मला सकाळी  ४.३० वाजता आईने उठवलं आणि मला बाथरूम मध्ये तोंड धुऊन दिले.  मी लगेच माझा शूज घातला आणि बॅग पॅक केली. शूज घातल्यावर मी सगळ्यांसोबत कॅन्टीन वर गेलो. तिथे मी सोडून सगळे जण चहा पिले. तिथे ते गाईड बोलत होते कि आपण आताच सफारीला जाऊया पण आम्हाला वाटलं कि अंधारात प्राणी नाही दिसत. म्हणून आम्ही (सुरज के पहिली किरण के साथ) निघायचं ठरवलं.  काही वेळानंतर आम्ही बाहेर गेलो.  मी पहिल्याच जिप्सी मध्ये बसलो.

Published by aaravraut

मैं अमरावती (महाराष्ट्र) से आरव राउत हूं। मै शुरू से ही एक प्रिंट-समृद्ध वातावरण में बड़ा हुआ, यही कारण था कि पढ़ने और लिखने की दिशा में मेरी प्रवृत्ति विकसित हुई। मेरी मातृभाषा मराठी है। हिंदी दूसरी भाषा है, जिसे मैंने दिल्ली में सुनना और अध्ययन करना शुरू किया जब मेरे पिता महाराष्ट्र से दिल्ली स्थानांतरित हो गए, मैं उस समय केवल 6 वर्ष का था। डायरी के ये पृष्ठ इस अर्थ में बहुत खास हैं क्योंकि यह मेरे द्वारा कक्षा 2 से ही लिखें गए है। मैं एजुकेशन मिरर का सबसे छोटा लेखक हूं जो एक ऑनलाइन शिक्षा संगठन है। जब मेरी दो डायरियाँ प्रकाशित हुईं, तो मैं दूसरी कक्षा में पढ़ रहा था। मैं हिंदी, मराठी के साथ ही अंग्रेजी भाषा में भी लिखता हूं। मुझे यात्रा करना, किताबें पढ़ना और नए विचारों पर काम करना पसंद है। घर पर, मुझे हमेशा अपने मन की बात लिखने की आजादी थी, मैं कभी भी उपदेशक बातें लिखने के लिए मजबूर नहीं था। यही कारण था कि मैंने जल्द ही पढ़ना और लिखना सीख लिया। बचपन में, मैंने लेखन की तकनीकी चीजों को समझा। मुझे याद है कि जब मैं कक्षा 1 (संत मैथ्यूज पब्लिक स्कूल, पश्चिम विहार, दिल्ली) में पढ़ रहा था, तब से मैंने लिखना शुरू किया। पहली बार मैंने 5 अप्रैल 2017 को लिखा था और तब से मैंने कई विषयों पर लिखा और मैंने अपने लेखन के सभी पृष्ठों को संजोकर रखा है। मेरे लेखन की यात्रा के दौरान, मुझे कभी भी किसी भी गलती के लिए बाधित नहीं किया गया था, मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं किसी भी व्याकरण में फंसे बिना लिखूं। इसी बात ने मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि मुझे पता था कि अगर कुछ गलत हुआ तो माँ / पिता कुछ नहीं कहेंगे। मैं किसी विषय के बारे में बहुत विस्तार के साथ एक पृष्ठ या कई पृष्ठ लिखता हूं।अगर मेरे द्वारा लिखे गए विषयों को देखा जाए, तो बहुत विविधता है।cc

4 thoughts on “सफर की यादें: दिल्ली से महाराष्ट्र तक

  1. बहीत सानदार लिखा है अपने मन की पुरी बात लिख दि और अपने पुराने वक्त की आदे भी ताजी कर दी और यह पढ़ कर में भी जु के खयालो में चला गया।

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  2. बहुत अच्छा लगता है आपको पढ़ना। आपको पढ़कर खुद कही घूम आने जैसा लगता है। शुक्रिया दोस्त।

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